मनवांछित फल की प्राप्ति हेतु, कोई भी दिन या एकादशी, पूर्णिमा के दिन किया जाता हे l सत्यामारायण पूजा में, श्रीकृष्ण (लालजी), नवग्रह, गणपति और सत्यनारायण पुजन किया जाता हे l
विवाह का एक नाम लगन भी हे l जब दी जीवो में या आत्मा की एक दुसरे में लगन लगती है l तब विवाह (लग्न) संभव बनता है l विवाह का अर्थ होता है, दो आत्मा का मिलन l हिन्दु संस्कृति में इसे सात जन्मो का ंधन भी कहा गया है l कुंडली मिलने के बाद ही विवाह करना चाहीये l
मकान या घर या कोई भी निर्माण के दौरान असंख्य जीवो की हिंसा होती है l लोहा, मीठी, लकडा, सीसा और अन्य ऐसे आठ प्रकार की धातुओ की शुद्धि के लिए, भूमि शुद्धि के लिए, जीवहिंसा के निवारण और तृप्ति के लिए वास्तु शांति करनी जरुरी है l इसी लिए विविध वस्तुओ को जमा करके होने वाली एस शांति को वास्तु शांति कहा जाता है l हमारे यहा संगीत के साथ भी वास्तु शांति करवाई जाती है l
भगवान शिव को प्रसन करने के हेतु, अच्छे शरीर स्वlस्थ के लिए, और संसार के तीन प्रकार के दुःख आधि, व्याधि और उपाधि के उपशमन के लिए रुद्राभिषेक करवाया जाता है l
रुद्राभिषेक के प्रकार : लघुरुद्र
- आधि : आभाव का दुःख
- व्याधि : शरीर पीड़ा (रोग)
- उपाधि : होने का दुःख
- होमत्मक लघुरुद्र (Homatmak Laghurudra)
- महारुद्र (Maharudra)
- अतिरुद्र (Atirudra)
पुरे श्रावन मास में यह पुजा की जाती है l या कर सकते है l
अपने पितृ देवताओ के मोक्ष और आत्म शांति के लिए पितृ शांति करवानी आवश्यक है l चैत्र भlद्रपद या कlर्तक माह में यह शांति करवाई जाती है l कोई भी माह कार्तिक, चैत्र या भlद्रपद के १ (प्रतिपदl) से ३० (अमावस्या) में यह शांति होती, कुष्ण पक्ष की l
नवदुर्गा की असीम कृपा या कुलदेवी की प्रसंता के लिए चैत्र, महा, आषाढ़ या आसो माह में यह नवचंडी यज्ञ करवा सकते है ल
अपने सुखी जीवन में वाघारूप और कस्ट देने वाले ग्रहोकी प्रसंता और कृपा प्राप्त करने के लिए नवग्रह के जाप और शांति करवाई जाती है l